विविध >> काशी मरणान्मुक्ति काशी मरणान्मुक्तिमनोज ठक्कर, रश्मि छाजेड़
|
9 पाठकों को प्रिय 262 पाठक हैं |
स्वयं की काया में स्थित हो साधना करता मानव जब स्वयं के सच्चिदानंदस्वरूप आत्मा से परिचित होता है, तो उसी घड़ी देह-भान से मुक्त हो जाता है। यही मरण भी है एवं काशी मरणान्मुक्ति भी!
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: common
Filename: books/book_info.php
Line Number: 553
|
लोगों की राय
No reviews for this book